Ground water pollution: बढ़ते भूजल प्रदूषण से खतरे में पड़ता स्वास्थ्य
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 20, 2025 06:06 AM2025-01-20T06:06:50+5:302025-01-20T06:06:50+5:30
Ground water pollution: वर्ष 2017 में यह आंकड़ा 21.6 प्रतिशत था, जिसमें कुछ कमी आई है, लेकिन यह अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है.

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Ground water pollution: पिछले दिनों केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा किए गए वार्षिक मूल्यांकन में भारत की भूजल की स्थिति को लेकर जो आंकड़े आए, वे चिंता का सबब बने हुए हैं. गौरतलब है कि वर्ष 2017 में भारत के 779 जिलों में से 359 जिलों में भूजल में नाइट्रेट की मात्रा अधिक पाई गई थी, लेकिन वर्ष 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर 440 हो गया है. जाहिर है कि देश के आधे से अधिक जिलों में भूजल में नाइट्रेट की मात्रा निर्धारित सीमा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है. उल्लेखनीय है कि सीजीडब्ल्यूबी ने भूजल के 15,239 नमूनों का विश्लेषण किया, जिसके परिणामस्वरूप पाया गया कि लगभग 19.8 प्रतिशत नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा सुरक्षित सीमा से अधिक थी. वर्ष 2017 में यह आंकड़ा 21.6 प्रतिशत था, जिसमें कुछ कमी आई है, लेकिन यह अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है.
दरअसल, नाइट्रेट का उच्च स्तर पानी की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो सकता है. खासकर शिशुओं में यह ब्लू बेबी सिंड्रोम जैसी गंभीर समस्या पैदा कर सकता है. इसके अलावा अतिरिक्त नाइट्रेट पर्यावरणीय प्रभावों को भी बढ़ावा देता है, जिससे जल निकायों और मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 49 प्रतिशत, कर्नाटक में 48 प्रतिशत और तमिलनाडु में 37 प्रतिशत नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक पाई गई. ये आंकड़े इन राज्यों में नाइट्रेट संदूषण के बढ़ते स्तर को दर्शाते हैं. राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे राज्य भूगर्भीय कारणों से नाइट्रेट संदूषण का सामना कर रहे हैं और यहां इस समस्या का समाधान हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है.
हालांकि अन्य राज्यों में भी इस समस्या में वृद्धि देखी जा रही है, जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है. नाइट्रेट संदूषण के अलावा भूजल में फ्लोराइड और यूरेनियम जैसे अन्य रासायनिक प्रदूषकों की सांद्रता भी चिंता का कारण है. राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में फ्लोराइड की मात्रा स्वीकार्य सीमा से अधिक पाई गई है, जो हड्डियों और दांतों की समस्याओं का कारण बन सकती है और लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. देश का भूजल दोहन 60.4 प्रतिशत तक पहुंच गया है और यह स्थिति 2009 से स्थिर बनी हुई है.
डेटा बताता है कि भारतीय समाज और कृषि के लिए भूजल का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है, जो भविष्य में जल संकट को और बढ़ा सकता है. हालांकि सीजीडब्ल्यूबी ने 73 प्रतिशत भूजल ब्लॉकों को सुरक्षित के रूप में वर्गीकृत किया है, जिसका अर्थ है कि इन ब्लॉकों में पानी की भरपाई की जा रही है, फिर भी कई अन्य ब्लॉकों में जल स्तर में गिरावट हो सकती है, जिससे भविष्य में भूजल संकट पैदा हो सकता है.