Economy Donald Trump Tariff War: अर्थव्यवस्था पर ट्रम्प के काले बादल की छाया?, विकास की गति धीमी और शेयर बाजार में हलचल

By हरीश गुप्ता | Updated: March 6, 2025 05:32 IST2025-03-06T05:32:38+5:302025-03-06T05:32:38+5:30

Economy Donald Trump Tariff War: प्रधानमंत्री मोदी के मित्र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत के साथ अलग व्यवहार करेंगे, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है.

Economy Donald Trump Tariff War Shadow Trump's dark cloud economy blog harish gupta Slow pace growth stock market turmoil | Economy Donald Trump Tariff War: अर्थव्यवस्था पर ट्रम्प के काले बादल की छाया?, विकास की गति धीमी और शेयर बाजार में हलचल

file photo

Highlightsदोनों देशों के बीच की केमिस्ट्री कहीं गुम हो गई है और दोस्ती के दिन अब लद गए हैं. प्रधानमंत्री ने ट्रम्प और कमला हैरिस से मिलने का कार्यक्रम लगभग तय कर लिया था.मोदी, एक ‘शानदार नेता’ न्यूयॉर्क शहर में कहीं उनसे मिलने आ रहे हैं.

Economy Donald Trump Tariff War: दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर भारतीय अर्थव्यवस्था को मुश्किल दौर से गुजरना पड़ रहा है. विकास की गति धीमी पड़ रही है, शेयर बाजार में सबसे बड़ी उथल-पुथल मची हुई है, निर्यात घट रहा है और रुपया औंधे मुंह गिर रहा है. भारत के भरोसेमंद मित्र अमेरिका ने टैरिफ युद्ध की घोषणा कर दी है, जिससे विश्व अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंच रहा है. उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी के मित्र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत के साथ अलग व्यवहार करेंगे, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है.

ऐसा लगता है कि दोनों देशों के बीच की केमिस्ट्री कहीं गुम हो गई है और दोस्ती के दिन अब लद गए हैं. ऐसा नहीं है कि ट्रम्प ने भारत को ही निशाना बनाया है. ऐसा माना जा रहा है कि अगर ट्रम्प-मोदी का उस समय फोटो सेशन हुआ होता, जब प्रधानमंत्री सितंबर, 2024 में अमेरिका में थे, तो स्थिति संभल सकती थी. सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री ने ट्रम्प और कमला हैरिस से मिलने का कार्यक्रम लगभग तय कर लिया था.

ट्रम्प ने सार्वजनिक रूप से यह भी संकेत दिया था कि मोदी, एक ‘शानदार नेता’ न्यूयॉर्क शहर में कहीं उनसे मिलने आ रहे हैं. यह एक साधारण फोटो सेशन होता. पता चला कि मोदी और कमला हैरिस की संक्षिप्त मुलाकात की भी योजना बनाई गई थी, लेकिन यह संभव नहीं हो सका और मोदी दोनों नेताओं से मिले बिना ही भारत लौट आए.

कहा जा रहा है कि ट्रम्प बहुत दुखी हैं और भारत के साथ गर्मजोशी नहीं दिखा रहे हैं. भारत के प्रति अनुकूल होने में उन्हें समय लग सकता है. आखिरकार, जब मोदी अमेरिका गए थे, तो उन्होंने ओवल ऑफिस में गर्मजोशी से मोदी का स्वागत किया था. ट्रम्प ने अभी तक भारत के दौरे के निमंत्रण का जवाब नहीं दिया है.

नृपेंद्र मिश्रा पीछे हटे

भाजपा संभवत: प्रतिष्ठित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में प्रवेश करने की कोशिश कर रही थी और यह तय करने के लिए प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव और राम जन्मभूमि मंदिर समिति व अन्य संस्थाओं के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा को आईआईसी के न्यासी बोर्ड का चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारा गया था. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने उनके नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर किए थे.

भाजपा के लिए आईआईसी पर नजर रखना और छह दशक बाद वामपंथियों के जबड़े से इसे छीनना मुश्किल नहीं है. दिल्ली जिमखाना क्लब में इसे सुरक्षा के नाम पर बंद करने के बजाय एक प्रशासक नियुक्त करके सफलता मिली क्योंकि यह प्रधानमंत्री के आवास के बहुत करीब है. इंडिया हैबिटेट सेंटर अनुभवी पूर्व राजनयिक भास्वती मुखर्जी के अधीन है.

जो भाजपा की करीबी सहयोगी और पेशेवर हैं और अब इंडिया हैबिटेट सेंटर की अध्यक्ष हैं. लेकिन अब पता चला है कि नृपेंद्र मिश्रा ने इस दौड़ से अपना नाम वापस ले लिया है क्योंकि डॉक्युमेंट्री फिल्म निर्माता सुहास बोरकर ने भी अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है. वे  पहले भी आईआईसी के ट्रस्टी चुने जा चुके हैं. आईआईसी के 7,349 सदस्य हैं और निर्वाचक मंडल में केवल 2,031 स्थायी सदस्य हैं. आम तौर पर 500 सदस्य मतदान में भाग लेते हैं. लेकिन मिश्रा ने मैदान छोड़ दिया क्योंकि यह एक कठिन चुनाव था.

दिल्ली के एलजी सक्सेना को पदोन्नति!

दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) विनय कुमार सक्सेना ने तीन साल के भीतर ही अपना काम पूरा कर लिया है, क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी हार चुकी है. प्रधानमंत्री मोदी की निजी पसंद के मुताबिक दिल्ली के एलजी के तौर पर सक्सेना ने 2022 में कई लोगों को चौंका दिया था, क्योंकि वह केवीआईसी (खादी श और ग्रामोद्योग आयोग) से आए थे, जिसके वे 2015 से अध्यक्ष थे.

मोदी भी उनके खादी को लोकप्रिय बनाने के तरीके से प्रभावित हुए थे. सक्सेना ने अकेले दम पर दिल्ली में आप को बेनकाब कर दिया, जबकि भाजपा का स्थानीय नेतृत्व कोई रणनीति नहीं बना पाया. एक तरह से उन्होंने शहर में भाजपा की सरकार बनाने का रास्ता साफ कर दिया. क्या अब सक्सेना को जाना चाहिए या वे बने रहेंगे?

दिल्ली के उपराज्यपाल ने ठीक वही किया है जिसकी उनके राजनीतिक आकाओं ने उनसे अपेक्षा की थी और अब दिल्ली में डबल इंजन की बजाय ट्रिपल इंजन वाली सरकार को केंद्र के साथ मिलकर काम करने और दिल्ली के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए एक नई तरह की भूमिका की आवश्यकता होगी.

ऐसा लगता है कि सक्सेना को पदोन्नत करने का समय आ गया है, हालांकि वे कुछ और समय तक पद पर बने रह सकते हैं, जब तक कि नई दिल्ली सरकार स्थापित नहीं हो जाती. उन्होंने उपराज्यपाल के रूप में अपनी कार्यशैली का परिचय दिया है और हर मुद्दे पर बारीकी से नजर रखी है, जिसमें राजनीतिक मुद्दे भी शामिल हैं, जिन्होंने आप को हर बिंदु पर बेनकाब किया है.

भाजपा को अब शहरी आवास, बुनियादी ढांचे, शहर की गतिशीलता सहित पेयजल पाइपलाइनों, बिजली, यमुना की सफाई, वायु प्रदूषण आदि का ध्यान रखने के अलावा लोकलुभावन वादों को पूरा करने की जरूरत है. लेकिन अभी शुरुआत है और सक्सेना, जिनका ग्राफ बहुत ऊपर चला गया है, पर अंतिम फैसला केवल प्रधानमंत्री लेंगे.

राहुल गांधी के सामने चुनौती

ऐसी रिपोर्ट के बावजूद कि समान विचारधारा वाले भाजपा विरोधी दलों का इंडिया गठबंधन एक ढीला-ढाला गठबंधन है, यह उतना बिखरा हुआ नहीं है, जितना कि लग सकता है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस अपने सहयोगियों के साथ या उनके बिना, एक के बाद एक राज्य भाजपा से हार रही है और कुछ राज्यों में उनके बीच मतभेद हैं.

दिल्ली में आप की हार ने कांग्रेस को कड़ी चोट पहुंचाई है क्योंकि यह बहुत स्पष्ट हो गया है कि पार्टी जीतने के लिए काम नहीं कर रही थी बल्कि भाजपा की मदद करने को भी तैयार थी. फिर भी, सब कुछ खत्म नहीं हुआ है क्योंकि बिहार में राजद-कांग्रेस-छोटे दलों के गठबंधन में उथल-पुथल हो सकती है, लेकिन राजनीतिक मजबूरियों के कारण यह बच सकता है.

पश्चिम बंगाल में अब यह अहसास हो रहा है कि किसी तरह की व्यवस्था करनी होगी क्योंकि भाजपा मार्च-अप्रैल 2026 के विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी को हटाने पर आमादा है. हाल ही में संपन्न आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की पश्चिम बंगाल की 10 दिवसीय यात्रा ने तृणमूल को बेचैन कर दिया है. असली समस्या यह है कि कांग्रेस को अपने घर को व्यवस्थित करना है;

चाहे वह केरल हो, असम हो या 2026 में चुनाव वाले अन्य राज्य हों और उसे जीतना ही होगा क्योंकि वहां लंबे समय से सूखा पड़ा है. इन राज्यों में पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. राहुल गांधी के सामने असली चुनौती है और अगर वह बिहार और इन राज्यों में कुछ खास नहीं कर पाते हैं तो भाजपा कर्नाटक समेत कई राज्यों में राहुल की नैया को हिलाने की कोशिश में लगी है.

Web Title: Economy Donald Trump Tariff War Shadow Trump's dark cloud economy blog harish gupta Slow pace growth stock market turmoil

कारोबार से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे