Digital arrest: नए शीर्ष पर साइबर डकैती
By अभिषेक कुमार सिंह | Published: November 6, 2024 05:46 PM2024-11-06T17:46:45+5:302024-11-06T17:47:44+5:30
Digital arrest: देश में साइबर क्राइम और डिजिटल अरेस्ट के मामले इस ऊंचाई पर पहुंच गए हैं कि हाल में प्रधानमंत्री ने अपने रेडियो कार्यक्रम-मन की बात के 115वें संस्करण में इनका जिक्र किया.
Digital arrest: पूरी दुनिया में भारत का एक गुणगान इसलिए होता रहा है कि इस देश ने रुपए-पैसे के डिजिटल लेनदेन के जो इंतजाम किए हैं, उसमें अमेरिका जैसे विकसित देश भी पिछड़ गए हैं. खास तौर से यूपीआई के जरिए होने वाले आर्थिक लेनदेन हर दिन नए रिकॉर्ड बना रहे हैं. पर इधर एक कीर्तिमान इसी डिजिटल प्रबंधन वाली दुनिया में आम लोगों से होने वाली ठगी के रूप में भी भारत में बन रहा है. देश में साइबर क्राइम और डिजिटल अरेस्ट के मामले इस ऊंचाई पर पहुंच गए हैं कि हाल में प्रधानमंत्री ने अपने रेडियो कार्यक्रम-मन की बात के 115वें संस्करण में इनका जिक्र किया.
इस संबंध में जनता से उनके आह्वान के फौरन बाद देश के गृह मंत्रालय ने समस्या का नोटिस लेते हुए कार्रवाई की. गृह मंत्रालय ने इन मामलों की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की है जिसकी निगरानी मंत्रालय के आंतरिक सुरक्षा सचिव करेंगे. पर यहां कुछ सवाल हैं कि आखिर वे कौन सी दिक्कतें हैं, जो साइबर ठगी को खत्म नहीं होने दे रही हैं.
खास तौर डिजिटल अरेस्ट के रूप में साइबर ठगी क्यों ऐसे मुकाम पर पहुंच गई है, जहां वह चोरी की बजाय डकैती बन गई है? डिजिटल अरेस्ट नामक समस्या कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा साल 2024 की पहली तिमाही के आंकड़े दे रहे हैं. आंकड़ों के मुताबिक इस साल पहली तिमाही में पूरे देश से साइबर ठगी की जो करीब साढ़े सात लाख शिकायतें दर्ज की गई हैं, उनमें से 120.3 करोड़ रुपए की चपत आम लोगों को डिजिटल अरेस्ट के माध्यम से ही लगी है. बीते एक साल में आम जनता साइबर ठगी के जरिए 1776 करोड़ रुपए की रकम गंवा चुकी है.
इसमें 1420 करोड़ रुपए सीधे-सीधे शेयर बाजार की लुभावनी योजनाओं का झांसा देकर, 222.58 करोड़ रुपए निवेश की अन्य फर्जी योजनाओं में फंसाकर और करीब सवा तेरह करोड़ रुपए प्यार-रोमांस से जुड़ी डेटिंग योजनाओं में उलझाकर ठगों ने लोगों से वसूले हैं. लेकिन अब ज्यादा बड़ी चिंता देश में डिजिटल अरेस्ट की घटनाओं में बढ़ोत्तरी को लेकर पैदा हुई है.
असल में, यह एक प्रकार से लोगों को घर बैठे किसी आपराधिक घटना में फंसाने की चाल है, जिसका इस्तेमाल साइबर लुटेरे कर रहे हैं. वे कई बहानों से आम लोगों को पुलिस के हाथों गिरफ्तारी का डर दिखाते हैं. ऑनलाइन धोखाधड़ी में साइबर ठग लोगों के बैंकिंग विवरण (जैसे कि पिन, पासवर्ड, ओटीपी) जानकर बैंक खातों से रकम उड़ाते हैं.
इसके लिए वे आम लोगों के मोबाइल फोन पर कोई लिंक भेजते हैं, जिस पर क्लिक करने और मामूली रकम का बैंकिंग लेनदेन करने पर साइबर ठगों को उस व्यक्ति के बैंक खाते से जुड़ी अहम जानकारियां मिल जाती हैं. इसके बाद ये धोखेबाज लोगों के खातों में जमा रकम पर हाथ साफ कर लेते हैं. लेकिन अब साइबर ठगों ने धोखाधड़ी का एक नया तरीका डिजिटल अरेस्ट के रूप में निकाल लिया है.
इस प्रक्रिया में साइबर ठग लोगों को उनके मोबाइल फोन पर वीडियो कॉल के जरिए गिरफ्तारी का डर दिखाने के लिए असली जैसे दिखने वाले पुलिसकर्मियों या सीबीआई आदि जांच एजेंसियों के अधिकारियों की मौजूदगी दर्शाते हैं. इस किस्म के तरीके में ये ठग बहुधा लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से शिकंजे में फांसते हैं.
एक बार जब कोई व्यक्ति इनके जाल में फंस जाता है और इन फर्जी जांच एजेंसियों के अधिकारियों के आगे खुद को निरुपाय महसूस करने लगता है, तब ये साइबर ठग उस व्यक्ति की सारी जमा-पूंजी बताए गए बैंक खातों में खुद ही भेजने को मजबूर कर देते हैं. देखा गया है कि डिजिटल अरेस्ट वाले ज्यादातर मामलों में सबसे पहले एक अनजान स्रोत से कॉल आती है.
इसमें कॉल करने वाला व्यक्ति सामान डिलीवरी करने वाली कूरियर सेवा का प्रतिनिधि होने अथवा पीड़ित के नाम पर जारी सिम कार्ड का गैरकानूनी इस्तेमाल होने आदि का बहाना गढ़ता है. वह दांव फेंकता है कि आपके द्वारा भेजा गया एक कूरियर किसी बंदरगाह या एयरपोर्ट पर जांच में फंस गया है क्योंकि उसमें गैरकानूनी मादक पदार्थों की खेप मिली है.
इस प्रकार झांसे में आए व्यक्ति को अंतरराष्ट्रीय तस्करी के गिरोह का सदस्य बताकर उसकी बात पुलिस सहित अन्य जांच एजेंसियों के अधिकारियों से कराई जाती है. फर्जी प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर), गिरफ्तारी का वॉरंट और अन्य नकली दस्तावेज मुहैया कराए जाते हैं जिनमें पीड़ित का नाम दर्शाया जाता है.
ऐसी स्थिति में पीड़ित लोग बुरी तरह भयभीत हो जाते हैं और डराए जाने पर खुद के साथ हो रही अनहोनी के बारे में किसी को सूचित करने के स्थान पर साइबर अपराधियों के इशारे पर उनके द्वारा बताए बैंक खातों में सारी रकम भेज देते हैं. डिजिटल अरेस्ट वाले मामले सिर्फ कूरियर कंपनी के झांसों तक सीमित नहीं हैं.
बल्कि इनमें लोगों के बेटे या बेटी के सेक्स रैकेट में फंसे होने, यौन शोषण के मामले में आरोपी होने, किसी आर्थिक धोखाधड़ी में शामिल होने जैसे तमाम मामलों का हवाला असली दिखने वाले फर्जी सबूतों के आधार पर देते हैं. हालांकि ऐसी घटनाओं की रोकथाम के उपाय काफी आसान हैं. यदि व्यक्ति थोड़ा सजग रहे, रुपए-पैसे के लेनदेन से जुड़ी अपनी निजी जानकारी साझा करने से बचे और आभासी गिरफ्तारी के डर पर काबू पा ले, तो साइबर लुटेरों के मंसूबे कारगर नहीं हो सकते. इसमें पहली शर्त यही है कि अनजान नंबरों से आए फोन को सुना ही न जाए.
अगर किसी भ्रम के कारण (जैसे कूरियर कंपनी से आए सामान की डिलीवरी या मुसीबत में फंसे व्यक्ति की गुहार के संबंध में) यदि कोई फोन कॉल सुनना जरूरी हो जाए, तो बिना डरे और निजी जानकारियां साझा किए बिना ही बात की जाए. यह मानकर चलना जरूरी हो गया है कि दुर्भाग्य से साइबर लुटेरों को देश की डिजिटल तरक्की ने ऐसे-ऐसे हथियार थमा दिए हैं, जिनमें से वे किस हथियार का इस्तेमाल कब और कैसे करेंगे- इसका पहले से पता लगाना मुश्किल है. देश में फर्जी आधार कार्ड, नकली पहचान पत्र और पते-ठिकाने से जुड़े फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बैंक खातों के खोले जाने से समस्या और बढ़ी है.
अगर सरकारी और निजी बैंकों के लिए जरूरी कर दिया जाए कि दस्तावेजों की वैधता संबंधी पुष्टि किए बगैर उनकी किसी भी शाखा में एक भी खाता खोला जाता है या उनका इस्तेमाल साइबर ठगों की रकम ठिकाने लगाने में होते हुए पाया जाता है, तो सरकार उनके बैंकिंग लाइसेंस रद्द कर देगी.
साथ ही, पकड़ में आए साइबर ठगों के नाम, फोटो, पते को सार्वजनिक करते हुए कड़े और नजीरी दंड देना जरूरी है. यदि ऐसा नहीं किया गया तो सिर्फ बातें करते रहने भर से साइबर फर्जीवाड़े हरगिज नहीं रुकेंगे.