Delhi-Ncr Air Pollution: दिल्ली-एनसीआर के निवासियों को मौसम का आभारी होना चाहिए कि पहले चक्रवात ‘दाना’ और फिर तेज हवा की बदौलत उनकी दिवाली इस बार पहले जितनी दमघोंटू साबित नहीं हुई, वरना सरकारी तंत्र की नाकामी और समाज की गैरजिम्मेदारी ने तो कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. दिल्ली-एनसीआर का एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई 339 तक ही यानी ‘बहुत खराब’ की श्रेणी में ही पहुंचा तो उसका श्रेय तेज हवा को दिया जाना चाहिए, जिससे प्रदूषण छाने के बजाय उड़ गया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल दिवाली के अगले दिन यह 358 था.
जबकि 2022 में 302, 2021 और 2020 में एक्यूआई क्रमश: 462 और 435 था. वैसे एक नवंबर की सुबह नौ बजे दिल्ली का एक्यूआई 362 था, जिसे तेज हवाओं ने कम कर दिया और औसत एक्यूआई 339 बताया गया. दिल्ली के 39 में से 37 निगरानी केंद्रों ने वायु गुणवत्ता को ‘बहुत खराब’ बताया. इस साल अपेक्षाकृत बेहतर रहा एक्यूआई भी सेहत के लिए कितना खतरनाक है.
इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि शून्य से 50 एक्यूआई तक की हवा ही ‘स्वच्छ’ होती है. उसके बाद 51-100 तक ‘संतोषजनक’, 101-200 ‘मध्यम’, 201-300 ‘खराब’, 301-400 ‘बहुत खराब’ और 401-500 एक्यूआईवाली हवा ‘गंभीर’ श्रेणी में आती है. फिर जन स्वास्थ्य को जोखिम में डालने का यह आत्मघाती खेल क्यों चल रहा है?
पिछले लगभग एक दशक से दिल्ली-एनसीआर निवासी सर्दियों की आहट के साथ ही जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हो जाते हैं, पर सत्ताधीशों से कुछ तात्कालिक राहतवाली पाबंदियों और आश्वासनों के सिवाय उन्हें कुछ नहीं मिलता. दिल्लीवासियों को गिने-चुने दिन ही स्वच्छ हवा नसीब होती है, वरना तो वे अस्वास्थ्यकर हवा में ही सांस लेने को अभिशप्त हैं.
यही विडंबना एनसीआर के ज्यादातर शहरों की है. इस साल भी दिवाली के अगले दिन दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, हरियाणा और पंजाब के भी कई शहरों में हवा ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गई. देश का सबसे स्वच्छ शहर बताए जानेवाले इंदौर में तो एक्यूआई 400 पार यानी ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गया. ये आंकड़े जन स्वास्थ्य के प्रति सरकारी तंत्र की सजगता पर तो सवालिया निशान लगाते ही हैं.
समाज को भी कठघरे में खड़ा करते हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेताते रहे हैं कि दिल्ली-एनसीआर की जहरीली हवा सांस संबंधी रोग बढ़ा रही है, जिनसे कैंसर भी हो सकता है. वायु प्रदूषण बच्चों एवं बुजुर्गों के लिए और भी ज्यादा खतरनाक है. भारत में हर साल वायु प्रदूषण से 20 लाख मौतें होती हैं. देश में होनेवाली मौतों का यह पांचवां बड़ा कारण है.
इसके बावजूद दमघोंटू हवा का दोष पराली और पटाखों के सिर मढ़ अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है तो यह संवेदनहीनता व निष्क्रियता की पराकाष्ठा ही है. देश की सर्वोच्च अदालत ने भी इस खतरनाक वायु प्रदूषण के लिए सरकारी तंत्र की नाकामी को जिम्मेदार माना है. सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने से रोकने में नाकामी पर पंजाब सरकार पर सख्त टिप्पणी की कि उसे खुद को ‘असमर्थ’ घोषित कर देना चाहिए.
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग भी अपनी जिम्मेदारी के निर्वाह में अभी तक तो नाकाम ही दिखता है. दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ते ही सांस और आंखों संबंधी रोगों के मरीज बढ़ने लगते हैं. डॉक्टर सुबह की सैर बंद करने और अनावश्यक रूप से बाहर न निकलने की सलाह देते हैं.
जो आम आदमी दो वक्त की रोटी और परिवार चलाने के लिए ही सुबह से देर रात तक चकरघिन्नी बना रहता है, सुबह की सैर शायद उसकी प्राथमिकता में नहीं है, पर अपने काम-धंधे के लिए तो उसे बाहर निकलना ही पड़ता है. सरकार और डॉक्टर की सलाह मान अगर आम आदमी घर में बैठ जाएगा तो उसका परिवार कैसे पलेगा?