जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉगः सार्वजनिक बैंकों में नई जान फूंकने का कदम
By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: November 25, 2018 11:48 AM2018-11-25T11:48:06+5:302018-11-25T11:48:06+5:30
नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की वजह से छोटे उद्योग-कारोबार क्षेत्र पर प्रतिकूल असर पड़ा है. ऐसे में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रम (एमएसएमई) के लिए 25 करोड़ रुपए तक के कर्ज के प्रस्तावित पुनर्गठन पैकेज से इस क्षेत्र को बड़ी राहत मिलने के आसार हैं.
निश्चित रूप से हाल ही में 19 नवंबर को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के केंद्रीय निदेशक मंडल की बैठक में किए गए निर्णयों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्ज आवंटन सहित विभिन्न कार्यो में नई जान फूंकी जा सकेगी. आगामी वित्त वर्ष तक उधारी मांग बढ़ने के दौरान बैंकों के पास अब कम से कम तीन लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त कर्ज देने की सहूलियत होगी. इसके साथ ही पूंजी पर्याप्तता नियम में ढील दिए जाने से बैंकों में पूंजी डालने पर सरकार को राहत मिलेगी और सरकार करीब 350 अरब रुपए बचा सकेगी.
नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की वजह से छोटे उद्योग-कारोबार क्षेत्र पर प्रतिकूल असर पड़ा है. ऐसे में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रम (एमएसएमई) के लिए 25 करोड़ रुपए तक के कर्ज के प्रस्तावित पुनर्गठन पैकेज से इस क्षेत्र को बड़ी राहत मिलने के आसार हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को भी फंसे कर्ज के बोझ को कुछ कम करने में मदद मिलेगी.
उल्लेखनीय है कि 19 नवंबर को आरबीआई की जो मैराथन बोर्ड बैठक हुई उसमें केंद्र सरकार और केंद्रीय बैंक दोनों ने सहयोग और समन्वय से पिछले कई दिनों से चल रहे सार्वजनिक विवाद का निराकरण कर आपसी परिपक्वता को प्रदर्शित किया है. इस बैठक में आरबीआई बोर्ड ने चार विवादास्पद मसलों पर चर्चा की और उपयुक्त निर्णय
किए हैं.
निश्चित रूप से आरबीआई के द्वारा पूंजी नियमों में नरमी से बैंकों की मुट्ठियों में उपयुक्त कर्ज देने के लिए धन आ सकेगा. यद्यपि सरकारी बैंक पूंजी बाजार भी जा सकते हैं लेकिन सरकारी बैंकों के शेयर मूल्य इतने कम हैं कि सरकारी बैंक शेयर बाजार से भी अपेक्षित पूंजी नहीं जुटा पाएंगे. सरकार सरकारी बैंकों का निजीकरण करते हुए उन्हें निजी हाथों में बेच भी सकती है लेकिन फिलहाल देश में सरकारी बैंकों को खरीदने की संभावना रखने वाले भरोसेमंद व्यक्ति या संगठन दिखाई नहीं दे रहे हैं.
इन सबके अलावा सरकारी बैंकों को विदेशियों को भी बेचा जा सकता है लेकिन इस समय यह देश हित एवं राजनीतिक दृष्टि से सही नहीं होगा. इस तरह ऐसा कोई उपाय नहीं है जो एक झटके में बैंकों की हालात सुधार दे और अर्थव्यवस्था की विभिन्न दिक्कतें दूर कर दे. चूंकि सरकार किसी सरकारी बैंक को विफल नहीं होने देना चाहती है, अतएव सरकार बैंकों को जरूरी पूंजी मुहैया कराने की डगर पर आगे बढ़ी है. इससे पूंजी की किल्लत से परेशान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को जल्द राहत मिलेगी. नीति आयोग का कहना है कि बैंकों को पूंजी मिलने से कर्ज देना आसान होगा. कर्ज देने की रफ्तार बढ़ने की स्थिति में निजी निवेश में तेजी आएगी.
सरकारी बैंकों के द्वारा एक ओर मुद्रा लोन, एजुकेशन लोन और किसान क्रेडिट कार्ड के जरिये बड़े पैमाने पर कर्ज बांटा जा रहा है. वहीं दूसरी ओर बैंकरों को लगातार पुराने लोन की रिकवरी भी करनी पड़ रही है. परिणामस्वरूप बैंक ऑफिसर अपने मूल काम यानी कोर बैंकिंग के लिए बहुत कम समय दे पा रहे हैं. चूंकि बीमा या सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ लेने के लिए बैंक खाता जरूरी है, ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में बैंकिंग सुविधाओं की भारी कमी है. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च, 2018 तक जनधन योजना के तहत 31.44 करोड़ खाते हैं.
2014 से 2017 के बीच दुनिया में 51 करोड़ खाते खुले जिसमें से 26 करोड़ खाते केवल भारत में जन-धन योजना के अंतर्गत हैं. भारत में इस अवधि में 26 हजार नई बैंक शाखाएं भी खुली हैं. ऐसे में भारत की नई बैंकिंग जिम्मेदारी बैंकों के निजीकरण से संभव नहीं है. सरकारी बैंकों को ही सक्षम बनाना जरूरी है.
गौरतलब है कि विगत 28 अगस्त को संसद की वित्तीय मामलों से संबंधित स्थायी समिति ने कहा है कि बैंकों के डूबत कर्ज और गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की वसूली के लिए अधिक रणनीतिक प्रयासों की जरूरत है. एनपीए की बढ़ती समस्या को सरकारी बैंकों के निजीकरण का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए.
रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत सरकार के द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में जो अतिरिक्तपूंजी डाली जा रही है, उससे बैंकों में डूबत कर्ज (एनपीए) के लिए प्रावधान में सुधार लाने में मदद मिलेगी.
नि:संदेह केंद्र सरकार के द्वारा आरबीआई के माध्यम से सरकारी बैंकों को अतिरिक्त कर्ज देने में सक्षम बनाने के साथ-साथ जो अन्य निर्णय लिए गए हैं, वे डूबते हुए कर्ज से गंभीर रूप से बीमार भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में महत्वपूर्ण सहयोग करेंगे.
हम आशा करें कि कर्ज पुनर्गठन योजना और पूंजी पर्याप्तता के कदमों से तरलता की स्थिति सुधरेगी क्योंकि बैंक एसएमई क्षेत्र में डूबत कर्ज का पुनर्गठन कर अधिक कर्ज बांट पाएंगे. हम आशा करें कि बैंकों में नए निवेश से सभी प्रकार के छोटे-बड़े उद्योग-कारोबार के साथ-साथ आम आदमी भी लाभान्वित होंगे. साथ ही सार्वजनिक बैंक मजबूत बनकर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए अर्थव्यवस्था को गतिशील कर सकेंगे.