भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः बिजली कंपनियों की हालत खस्ता क्यों?
By भरत झुनझुनवाला | Published: February 9, 2019 06:38 AM2019-02-09T06:38:24+5:302019-02-09T06:38:24+5:30
इस परिवर्तन का प्रमुख कारण है कि बिजली की डिमांड में गिरावट आई है. वर्तमान में हमारी आर्थिक विकास दर लगभग 7 प्रतिशत पर टिकी हुई है.
कोयले से बिजली बनाने वाली थर्मल पावर कंपनियां परेशानी में हैं. बीते समय में केंद्र सरकार ने कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में इनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए कमेटी बनाई थी. कमेटी ने कोयले से बिजली बनाने वाले 34 थर्मल प्रोजेक्टों के परेशानी में पड़ने का एक प्रमुख कारण यह बताया था कि बिजली के दाम गिर गए हैं. अपने देश में केंद्र सरकार ने इंडिया एनर्जी एक्सचेंज नाम का बाजार बनाया है जिसमें बिजली की खरीद एवं बिक्र ी की जाती है.
एक्सचेंज में बिजली के दाम उसी प्रकार चढ़ते-उतरते हैं जैसे सब्जी मंडी में. उद्यमियों ने कई प्रोजेक्टों को यह सोचकर लगाया था कि वे उत्पादित बिजली को बाजार में अच्छे दाम पर बेच लेंगे और प्रॉफिट कमाएंगे. लेकिन एक्सचेंज में बिजली के दाम गिर गए, उत्पादित बिजली को उद्यमियों को सस्ते दाम पर बेचना पड़ा, और ये घाटे में आ गए. कुछ वर्ष पूर्व तक देश में पावर कट लगातार होते थे. आज बिजली खरीदने वाले नहीं रहे. इस परिवर्तन का प्रमुख कारण है कि बिजली की डिमांड में गिरावट आई है. वर्तमान में हमारी आर्थिक विकास दर लगभग 7 प्रतिशत पर टिकी हुई है.
बीते चार वर्षो में इसमें वृद्धि नहीं हुई है. लेकिन इन्हीं चार वर्षो में सेंसेक्स लगभग 30 हजार से बढ़कर 37 हजार तक पहुंच गया है. प्रश्न है कि विकास दर शिथिल रहने के बावजूद सेंसेक्स क्यों उछल रहा है? कारण है कि नोटबंदी, कर्ज तथा इनकम टैक्स के खौफ से छोटे उद्यमी सहम गए हैं. छोटी कंपनियों के बंद होने से बड़ी कंपनियों को खुली चाल मिल गई है. इनका धंधा बढ़ रहा है जिसके कारण सेंसेक्स उछल रहा है. जो माल पहले छोटी कंपनियों द्वारा उत्पादित होता था उसी का अब बड़ी कंपनियों द्वारा उत्पादन हो रहा है. इस अंतर का बिजली की डिमांड पर प्रभाव पड़ता है.
छोटे उद्यमी आज वाशिंग मशीन, फ्रिज या एयर कंडीशनर खरीदने को उत्सुक हैं. उनका धंधा ठप होने से वे इन उपकरणों को नहीं खरीद पा रहे हैं और इन उपकरणों से बिजली की जो डिमांड पैदा हो सकती थी, वह उत्पन्न नहीं हो रही है. बड़ी कंपनियों द्वारा अधिक लाभ कमा कर इसका वितरण डिविडेंड के रूप में शेयर धारकों को किया जा रहा है. ये शेयर धारक मुख्यत: संभ्रांत वर्ग के होते हैं.
इनके घरों में वाशिंग मशीन, फ्रिज और एयर कंडीशनर पहले ही लगे हुए हैं. अत: डिविडेंड ज्यादा मिलने से इनके द्वारा बिजली की डिमांड में विशेष वृद्धि नहीं होती है. इस प्रकार छोटे उद्यमियों की परेशानी के कारण देश में बिजली की मांग में वृद्धि कम ही हो रही है. बिजली की डिमांड कम होने का दूसरा कारण है कि देश की आय में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान कम और सेवा क्षेत्न का बढ़ रहा है.
जलविद्युत परियोजनाओं द्वारा बिजली का उत्पादन प्रात:काल और सायंकाल किया जाता है. इन्हें 4 रुपए प्रति यूनिट का दाम मिलता है. लेकिन इनकी उत्पादन लागत लगभग 7 रुपए प्रति यूनिट आती है. 7 रुपए में बिजली उत्पादन करके 4 रुपए में बेचना इनके लिए घाटे का सौदा है. तुलना में कोयले से चलने वाले थर्मल संयंत्नों द्वारा 24 घंटे बिजली सप्लाई की जाती है. इन्हें रात्रि और दिन का 3 रुपए का रेट मिलता है जबकि इनकी उत्पादन लागत लगभग 5 रुपए पड़ती है. 5 रुपए में उत्पादन करके 3 रुपए में बिजली को बेचना इनके लिए घाटे का सौदा है. इसलिए ये बिजली कंपनियां संकटग्रस्त हो रही हैं.
प्रश्न है कि हम इस दलदल में कैसे फंसे? इस समस्या की जड़ ऊर्जा मंत्नालय की संस्था सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी में है. इस अथॉरिटी द्वारा आने वाले वर्षो में बिजली की डिमांड के अनुमान प्रकाशित किए जाते हैं. इन अनुमान के आधार पर उद्यमी थर्मल एवं हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगाते हैं और बैंक इन्हें ऋण देते हैं.
अथॉरिटी बिजली की डिमांड के अनुमान बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती है. उदाहरण के लिए वर्ष 2003-04 में अथॉरिटी द्वारा दिए गए अनुमान की तुलना में वास्तविक डिमांड 30 प्रतिशत कम रही थी. इस कृत्रिम डिमांड को पूरा करने के लिए देश के उद्यमियों ने बिजली संयंत्न लगाए जो इस कृत्रिम डिमांड के फलीभूत न होने के कारण आज संकट में पड़ गए हैं.
कहा जा रहा है कि बिजली बोर्ड की खस्ता हालत के कारण बिजली की डिमांड कम है. यह बात नहीं जमती है क्योंकि बिजली बोर्डो की हालत में पहले से सुधार हुआ है. दूसरा कथित कारण कोयले की अनुपलब्धि है. लेकिन कोयले में भी पूर्व की तुलना में सुधार हुआ है. अत: इस कारण संकट पैदा हुआ हो यह बात गले नहीं उतरती है.
सच यह है कि मैन्युफैक्चरिंग के लिए देश को बिजली की जरूरत कम है क्योंकि हमारा विकास मुख्यत: सेवा क्षेत्न से हो रहा है जिसमें बिजली की डिमांड कम होती है. खपत के लिए भी बिजली की डिमांड कम है क्योंकि छोटे उद्यमियों पर संकट है और इनके द्वारा बिजली की खपत नहीं बढ़ रही है.
अत: इस समस्या को हल करने के लिए सरकार को पहले छोटे उद्यमियों को पुनर्जीवित करने के लिए पॉलिसी बनानी पड़ेगी. साथ-साथ वर्तमान में थर्मल और हाइड्रो पावर प्लांट जो संकट में हैं, उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए पैसा नहीं देना चाहिए. वर्तमान में सौर ऊर्जा का दाम लगभग 3 रुपए प्रति यूनिट हो गया है. इसलिए आने वाले समय में सौर ऊर्जा से हमको अपनी बिजली की जरूरतें पूरी करना ज्यादा अनुकूल पड़ेगा. थर्मल और हाइड्रो का सूर्यास्त हो रहा है और इसे अस्त हो जाने देना चाहिए.