भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: छोटे उद्योगों को संरक्षण दिया जाए
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 3, 2019 01:00 PM2019-03-03T13:00:36+5:302019-03-03T13:00:36+5:30
जीएसटी तथा नोटबंदी के बाद यह गिरावट और तीव्र हुई है ऐसा हम समझ सकते हैं. छोटे उद्योगों की इन बढ़ती समस्याओं का मुख्य कारण आधुनिक तकनीकें हैं. ऑटोमैटिक मशीनों से बने माल की उत्पादन लागत कम पड़ती है.
नोटबंदी और जीएसटी के लागू होने के बाद छोटे उद्योगों की परेशानियां बढ़ी हैं. इन कदमों से उनकी पूर्व से ही बढ़ती हुई परेशानियां आगे बढ़ी हैं. छोटे उद्योगों के मंत्रलय के अनुसार वर्ष 2014 में देश के कुल उत्पाद में छोटे उद्योगों का हिस्सा 29.8 प्रतिशत था जो 2016 में घटकर 28.8 प्रतिशत हो गया था. जीएसटी तथा नोटबंदी के बाद यह गिरावट और तीव्र हुई है ऐसा हम समझ सकते हैं. छोटे उद्योगों की इन बढ़ती समस्याओं का मुख्य कारण आधुनिक तकनीकें हैं. ऑटोमैटिक मशीनों से बने माल की उत्पादन लागत कम पड़ती है. जैसे आधुनिक कपड़ा मील में बनाया गया कपड़ा सस्ता पड़ता है जबकि हथकरघा द्वारा बनाया गया कपड़ा महंगा पड़ता है. इसलिए उपभोक्ता की दृष्टि से ऑटोमैटिक मशीनों को बढ़ावा देना उचित लगता है. यही कारण है कि छोटे उद्योगों की परिस्थिति बिगड़ रही है.
प्रश्न है कि छोटे उद्योगों को यह संरक्षण दिया कैसे जाए? पहला उपाय है कि पूंजी सघन और श्रम सघन उद्योगों पर अलग अलग दर से जीएसटी तथा इनकम टैक्स लगाया जाए. जैसे मान लीजिए आज कपड़े पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगाई जाती है. यह दर छोटे और बड़े उत्पादकों पर एक समान रहती है. ऐसे में सरकार व्यवस्था कर सकती है कि श्रम सघन कपड़ा उत्पादकों पर जीएसटी की दर घटा कर 5 प्रतिशत कर दे और बड़े कपड़ा उत्पादकों पर जीएसटी की दर बढ़कर 18 प्रतिशत कर दे. ऐसा करने से समग्र कपड़ा उद्योग पर जीएसटी की दर पूर्ववत लगभग 12 प्रतिशत रहेगी लेकिन उत्पादकों में श्रम सघन छोटे उत्पादकों को राहत मिलेगी.
छोटे उद्योगों को समर्थन देने का दूसरा उपाय जीएसटी के अंतर्गत कम्पोजीशन स्कीम में परिवर्तन करने का है. वर्तमान में छोटे उद्योगों पर केवल 1 प्रतिशत जीएसटी देय होती है. लेकिन इसमें समस्या है कि छोटे उद्योगों द्वारा कच्चे माल की खरीद पर जो जीएसटी अदा की जाती है उसका रिफंड नहीं मिलता है.
तीसरा उपाय यह है कि छोटे उद्यमों को कर्ज देना बैंक मैनेजरों के लिए लाभप्रद बना दिया जाए. वर्तमान व्यवस्था यह है कि रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को आदेश दिया जाता है कि कुछ रकम छोटे उद्यमियों को ऋण के रूप में दें. लेकिन बैंक मैनेजरों के लिए तमाम छोटे छोटे उद्यमियों को छोटे छोटे ऋण देने में झंझट और रिस्क अधिक होती है इसलिए वे छोटे उद्यमियों को ऋण देने में रूचि नहीं रखते हैं. वे पसंद करते हैं कि छोटे उद्यमियों को ऋण देने के स्थान पर उस रकम को नियमानुसार रिजर्व बैंक के पास जमा करा दें.
इस समस्या का उपाय यह है कि सरकार जो छोटे उद्यमियों को ऋण में सब्सिडी देती है उसका कुछ हिस्सा बैंकों को इंसेंटिव के रूप में दे. तब बैंक मैनेजर जो छोटे उद्योगों को ऋण अधिक संख्या में देंगे उनकी शाखा का लाभ बढ़ेगा और वे छोटे उद्योगों को ऋण देने में रूचि लेंगे. ऐसा करने से हम छोटे उद्योगों को बढ़ावा दे सकते हैं और रोजगार और उद्यमिता का विकास कर सकते हैं.