भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः चुनाव पूर्व की आर्थिक चुनौतियां बरकरार
By भरत झुनझुनवाला | Published: February 2, 2019 08:58 PM2019-02-02T20:58:40+5:302019-02-02T20:58:40+5:30
नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्योगों को पस्त कर दिया. ये छोटे उद्योग ही रोजगार उत्पन्न करते थे. फलस्वरूप रोजगारों का संकुचन हुआ.
बजट में वित्त मंत्नी ने छोटे किसानों को सीधे नगद देने की घोषणा की है. दो हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों को 500 रुपए प्रति माह या 6,000 रुपए प्रति वर्ष सीधे उनके खाते में डाले जाएंगे. संभव है कि वित्त मंत्नी ने इस रास्ते 2019 के चुनाव को साधने का प्रयास किया है. इस रणनीति को समझने के लिए आगामी चुनाव के परिदृश्य पर नजर डालनी होगी.
पिछले चार वर्षो में भाजपा की पॉलिसी थी कि गाय एवं राम मंदिर के मुद्दों पर हिंदू वोट का ध्रुवीकरण किया जाए. इसके साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भाजपा विकसित देशों की तर्ज पर बढ़ाना चाहती थी जैसे मेक इन इंडिया और बुलेट ट्रेन के माध्यम से. विकसित देशों का अनुसरण करने के इस प्रयास में नोटबंदी और जीएसटी को लागू किया जिससे कि विकसित देशों की तरह भारत में भी डिजिटल इकोनॉमी स्थापित हो. ये कदम सरकार के लिए विशेष हानिप्रद सिद्ध हुए.
नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्योगों को पस्त कर दिया. ये छोटे उद्योग ही रोजगार उत्पन्न करते थे. फलस्वरूप रोजगारों का संकुचन हुआ. रोजगार के संकुचन से आम आदमी की क्र यशक्ति का ह्रास हुआ और बाजार में माल की मांग में ठहराव आ गया. यही कारण है कि अर्थव्यवस्था की विकास दर पूर्ववत 7 प्रतिशत पर टिकी हुई है. भारत द्वारा अमीर देशों की पॉलिसी लागू करने से भारत की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई है. इस बिगड़ती स्थिति को संभालने के लिए वित्त मंत्नी ने छोटे किसानों को सीधे रकम देने की घोषणा की है. साथ साथ इनकम टैक्स में छूट को 2.50 लाख से बढ़ाकर 5 लाख किया है. इन कदमों से अर्थव्यवस्था की मुख्य चुनौतियों का सामना नहीं हो सकेगा.
पहला मुद्दा किसानों का है. अंतर्राष्ट्रीय बजार में कृषि उत्पादों के दाम में निरंतर गिरावट आने से संपूर्ण विश्व के किसान दबाव में हैं. सरकार की पॉलिसी है कि उत्पादन बढ़ाकर किसानों का हित हासिल किया जाए. परंतु यह सफल नहीं हो रहा है. कारण यह कि उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ बाजार में दाम गिर जाते हैं और किसान को लाभ के स्थान पर घाटा होता है. इस समस्या का उपाय यह था कि सरकार द्वारा किसानों के हित के लिए जो सब्सिडी दी जा रही है जैसे खाद्यान्न, फर्टिलाइजर, बिजली और मनरेगा पर; उसे किसान को सीधे उसके खाते में डाल दिया जाता.
ऐसा करने से ऋण माफी का जो भूचाल चल रहा है उससे देश मुक्त हो जाता चूंकि किसान को एक निश्चित सम्मानजनक आय मिल जाती. मेरे गणित के अनुसार यदि वर्तमान कृषि सब्सिडियों को समाप्त कर दिया जाता तो देश के लगभग हर किसान परिवार को 50 हजार रु पया प्रति वर्ष दिया जा सकता था. परंतु वित्त मंत्नी ने बजट में केवल 6000 रु. प्रति वर्ष देने की घोषणा की है.
दूसरा मुद्दा रोजगार का है. जैसा ऊपर बताया गया है कि जीएसटी के कारण छोटे उद्योगों को परेशानी हुई है. यह आज भी जारी है. कारण यह है कि छोटे उद्यमों को खरीदे गए माल पर जीएसटी अदा करना पड़ता है परंतु उनके माल को खरीदने वाले को वह सेट ऑफ नहीं मिलता है. इसीलिए जीएसटी के लागू होने के बाद व्यापारियों ने छोटे उद्यमों से माल खरीदना कम कर दिया है. इन्हीं छोटे उद्यमों द्वारा अधिकतर रोजगार बनाए जा रहे थे जो अब मंद पड़ गया है. रोजगार सृजन में ठहराव का यह प्रमुख कारण है. इसका सीधा उपाय था कि सरकार छोटे उद्यमियों को कम्पोजिशन स्कीम के अंतर्गत इनपुट पर अदा किए गए जीएसटी का रिफंड लेने की व्यवस्था करती. ऐसे ठोस कदम उठाने के स्थान पर वित्त मंत्नी ने छोटे उद्योगों को लोन में कुछ छूट देने मात्न की घोषणा की है जो कि नई बोतल में पुरानी दवा है. यह निष्प्रभावी रहेगी.