भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: ऋण लेकर संकट से निपटने की अदूरदर्शी सोच
By भरत झुनझुनवाला | Published: June 11, 2021 01:45 PM2021-06-11T13:45:40+5:302021-06-11T13:46:57+5:30
इस कठिन परिस्थिति में सरकार को कुछ कठोर कदम उठाने की जरूरत है. ऐसा इसलिए कि ऋण का बोझ और नहीं बढ़े. सरकार को ईंधन तेल के ऊपर आयात कर बढ़ाकर राजस्व वसूलना चाहिए व इसकी खपत कम करना चाहिए.
वर्तमान कोरोना के संकट को पार करने के लिए भारत सरकार ने भारी मात्रा में ऋण लेने की नीति अपनाई है. ऋण के उपयोग दो प्रकार से होते हैं. यदि ऋण लेकर निवेश किया जाए तो उस निवेश से अतिरिक्त आय होती है और उस आय से ऋण का ब्याज एवं मूल का पुनर्भुगतान किया जा सकता है. जिस प्रकार उद्यमी ऋण लेकर उद्योग स्थापित करता है, अधिक लाभ कमाता है, और उस अतिरिक्त लाभ से ऋण का भुगतान करता है.
ऐसे में ऋण का सदुपयोग उत्पादक कार्यो के लिए होता है. लेकिन यदि ऋण का उपयोग घाटे की भरपाई के लिए किया जाए तो उसका प्रभाव बिलकुल अलग होता है. खपत के लिए उपयोग किए गए ऋण से अतरिक्त आय उत्पन्न नहीं होती है. बल्कि संकट के दौरान लिए गए ऋण पर अदा किए जाने वाले ब्याज का अतिरिक्त भार आ पड़ता है. जैसे किसी कर्मी की नौकरी छूट जाए और वह ऋण लेकर अपनी खपत बनाए रखे तो भी दुबारा नौकरी पर जाने के बाद लिए गए ऋण पर ब्याज का भुगतान करना पड़ेगा. इस प्रकार उसकी शुद्ध आय में गिरावट आएगी.
इस परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार समेत विश्व के तमाम विकासशील देशों द्वारा संकट पार करने के लिए लिए जाने वाले ऋण पर विचार करना होगा. ये ऋण नौकरी छूटने पर लिए गए ऋण के समान है चूंकि इनसे अतिरिक्त आय नहीं उत्पन्न हो रही है.
इसलिए विश्व बैंक ने चेताया है कि ऋण लेकर संकट पार करने की नीति भविष्य में कष्टप्रद होगी. उन्होंने वेनेजुएला का उदाहरण दिया है जिसने भारी मात्न में ऋण लिए. आज उस देश को खाद्य सामग्री प्राप्त करना भी दुश्वार हो गया है चूंकि ब्याज का भारी बोझ आ पड़ा है.
इसी क्रम में छह विकासशील देश जाम्बिया, इक्वाडोर, लेबनान, बेलीज, सूरीनाम और अर्जेटीना ने अपने ऋण की अदायगी से वर्ष 2020 में ही डीफाल्ट कर दिया है. वे लिए गए ऋण का भुगतान नहीं कर सके हैं. साथ-साथ 90 विकासशील देशों ने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से आपात ऋण की सुविधा की मांग की है, जिससे पता लगता है कि विकासशील देशों के द्वारा लिए जाने वाले ऋण का प्रचलन फैल भी रहा है और उन्हें संकट में भी डाल रहा है.
तुलना में अमेरिका और चीन द्वारा लिए गए ऋण का चरित्र कुछ भिन्न है. अमेरिकी सरकार ने भारी मात्र में ऋण लेकर अपने नागरिकों को नगद ट्रांसफर दिए हैं. लेकिन साथ-साथ उन्होंने नई तकनीकों में भारी निवेश भी किया है. जैसे अमेरिकी सरकार ने बैक्टीरिया रोगों की रोकथाम के लिए प्रकृति में उपलब्ध फाज से उपचार के लिए सब्सिडी दी है.
इसी प्रकार चीन ने अमेरिका और रूस के साथ अंतरिक्ष यान बनाने के स्थान पर स्वयं अपने बल पर अंतरिक्ष यान बनाना शुरू कर दिया है और उसका पहला हिस्सा अंतरिक्ष में भेज दिया है; चीन ने सूर्य के बराबर तापमान पैदा किया है; अपने ही लड़ाकू विमान बनाए हैं; और मंगल ग्रह पर अपने सैटेलाइट को उतारा है. ऐसे में अमेरिका और चीन के द्वारा लिए गए ऋण का चरित्र भिन्न हो जाता है.
भारत सरकार द्वारा लिया जाने वाला ऋण एक और दृष्टि से संकट पैदा कर सकता है. पिछले महीने अप्रैल 2021 में जीएसटी से प्राप्त राजस्व में भारी वृद्धि हुई है. पिछले दो वर्ष में लगभग एक लाख करोड़ रु. प्रति माह से बढ़कर मार्च 2021 में 1.23 लाख करोड़ और अप्रैल 2021 में 1.41 लाख करोड़ का राजस्व जीएसटी से मिला है.
इस आधार पर सरकार द्वारा लिया गया ऋण स्वीकार्य हो सकता है. लेकिन तमाम आंकड़े इतनी उत्साहवर्धक तस्वीर नहीं पेश करते. मैकेंजी के एक सर्वेक्षण में जनवरी 2021 में 86 प्रतिशत लोग देश की अर्थव्यवस्था के प्रति सकारात्मक थे जो अप्रैल 2021 में घटकर 64 प्रतिशत हो गए थे. भारत सरकार ने दिसंबर 2019 में अपनी जीडीपी का 74 प्रतिशत ऋण ले रखा था जो कि दिसंबर 2020 में बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया है.
इस वर्ष के बजट में वित्त मंत्नी ने भारी मात्रा में ऋण लेने की घोषणा की थी जो कि कोविड की दूसरी और तीसरी लहर के कारण हुई क्षति के कारण और अधिक होगा.
इस कठिन परिस्थिति में सरकार को कुछ कठोर कदम लेने चाहिए ताकि ऋण का बोझ न बढ़े. पहला यह कि ईंधन तेल के ऊपर आयात कर बढ़ाकर राजस्व वसूलना चाहिए व इसकी खपत कम करना चाहिए.
दूसरा, सरकार को अपनी खपत में भारी मात्ना में कटौती कर देनी चाहिए और अन्य अनुत्पादक खर्चो को समेटना चाहिए. तीसरा, सरकार को नई तकनीकों में भारी निवेश करना चाहिए. हमारे लिए शर्म की बात है कि दवाओं के क्षेत्न में अग्रणी होने के बावजूद आज हम अपने देश के भारत बायोटेक के टीके से आत्म निर्भर नहीं हो सके हैं और तमाम देशों से टीके आयात कर रहे हैं.
इसलिए इस कठिन परिस्थिति में अपने बल पर नई तकनीकों में भारी निवेश की पहल करनी चाहिए अन्यथा यह ऋण अर्थव्यवस्था को ले डूबेगा.