अश्विनी महाजन का ब्लॉग: रेटिंग एजेंसियों का आकलन सही नहीं

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 16, 2020 02:02 PM2020-04-16T14:02:49+5:302020-04-16T14:02:49+5:30

मूडीज द्वारा भारतीय बैंकों की रेटिंग की गिरावट से केवल शेयर बाजार में ही उथल-पुथल नहीं हुई, बल्कि एनपीए की समस्या से उबरते बैंकों के लिए और अधिक कठिनाइयां हो सकती हैं.

Ashwini Mahajan blog Assessment of rating agencies not correct | अश्विनी महाजन का ब्लॉग: रेटिंग एजेंसियों का आकलन सही नहीं

अश्विनी महाजन का ब्लॉग: रेटिंग एजेंसियों का आकलन सही नहीं

कुछ दिन पहले अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी मूडीज ने भारतीय बैंकों के दृष्टिकोण को स्थिर से बदलकर ऋणात्मक घोषित कर दिया है. मूडीज का कहना है कि कोरोना वायरस की त्रसदी के चलते होने वाली हानि के चलते भारतीय बैंकों की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता बिगड़ने वाली है. उसका यह भी कहना है कि यह बिगाड़ कॉर्पोरेट, मझोले और छोटे, खुदरा सभी क्षेत्रों में होने का अंदेशा है. इस सबके चलते बैंकों की पूंजी और लाभप्रदता दोनों पर प्रभाव पड़ेगा. 

मूडीज ने यह भी कहा है कि सरकारी बैंकों में फंडिंग और तरलता स्थिर रह सकती है, लेकिन पिछले दिनों एक निजी क्षेत्र के बैंक (यस बैंक) में आए संकट के चलते व्यवस्था में जोखिम लेने से बचने की प्रवृत्ति के कारण, छोटे ऋणदाताओं पर तरलता का संकट आ सकता है. मूडीज की इस घोषणा के बाद भारतीय बैंकों के शेयरों में भारी गिरावट देखने में आई है.

 यह पहली बार नहीं है कि मूडीज या किसी दूसरी रेटिंग एजेंसी ने इस प्रकार से रेटिंग गिराई है. ये रेटिंग एजेंसियां अक्सर ऐसा करती रहती हैं और कई बार तो ऐसा भी होता है कि इस प्रकार की कार्यवाही का कोई कारण भी नहीं होता. भारतीय बैंकिंग की मूडीज द्वारा हालिया रेटिंग में गिरावट के संदर्भ में ध्यान देना होगा कि भारत की शेयर बाजार नियामक ‘सेबी’ द्वारा दी गई सलाह को भी मूडीज ने दरकिनार कर दिया है. 

‘सेबी’ ने यह कहा था कि ऋण और ब्याज अदायगी में तीन महीने की छूट को ऋण अदायगी में कोताही नहीं माना जाना चाहिए, यह एक अल्पकालिक व्यवस्था मात्र है. समझना होगा कि मूडीज द्वारा भारतीय बैंकों की रेटिंग की गिरावट से केवल शेयर बाजार में ही उथल-पुथल नहीं हुई, बल्कि एनपीए की समस्या से उबरते बैंकों के लिए और अधिक कठिनाइयां हो सकती हैं.

‘स्टैंडर्ड एंड पूअर्स’ ‘मूडीज’ और ‘फिच’ नाम की तीन प्रमुख रेटिंग एजेंसियां दुनिया में स्थापित हैं. ‘फिच’ का मुख्यालय न्यूयॉर्क और लंदन दोनों शहरों में है. आज पहली दोनों कंपनियां मिलकर 81 प्रतिशत रेटिंग बिजनेस करती हैं और बाकी में से 13़ 5 प्रतिशत हिस्सा ‘फिच’ के पास है. ये रेटिंग एजेंसियां (कंपनियां) दुनिया भर के देशों और वित्तीय संस्थानों की रेटिंग करती हैं, उनकी रेटिंग के आधार पर ही इन मुल्कों की सरकारों द्वारा लिए जाने वाले ऋणों का ब्याज निर्धारित होता है. लेकिन इन एजेंसियों की अपनी साख बहुत अच्छी नहीं है.

2008 में जब अमेरिका के बड़े-बड़े बैंक और वित्तीय संस्थान डूबे थे, उसके कुछ समय पहले ही ये रेटिंग एजेंसियां उन्हें उच्च रेटिंग प्रदान कर रही थीं. वास्तव में दोष व्यवस्था का है, जिसमें रेटिंग एजेंसियों को कंपनियां ही भुगतान करती हैं और उसके कारण उन्हें ऊंची रेटिंग भी प्राप्त होती है. यह विषय ‘हितों के टकराव’ का है.

Web Title: Ashwini Mahajan blog Assessment of rating agencies not correct

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