Mohe Panghat Pe Song Review: ज़िन्दगी में अगर कभी प्यार ने छुआ है तो यह गाना सुकून देगा
By रोहित कुमार पोरवाल | Published: May 17, 2019 04:01 PM2019-05-17T16:01:34+5:302019-05-17T16:25:20+5:30
यूट्यूब पर मोस्ट व्यूड सांग्स में 6.1 बिलियन व्यूज के साथ despecito और दूसरे नंबर पर 4.2 व्यूज के साथ shape of you हैं, दोनों ही गानों के अंग्रेज़ी बोलों के अर्थ अश्लीलता की पराकाष्ठा हैं लेकिन शुद्ध प्रेमाभिव्यक्ति का अरबों टन श्रृंगार रस लादे यह गाना आज की पीढ़ी से कोसों दूर है।
दुनिया में हर मर्ज के लिए दवा हो या न हो लेकिन हर मानसिक अवस्था के लिए संगीत ज़रूर मौजूद है। दार्शनिक स्वभाव वाले लोग तो धरती की परिक्रमा, बारिश की बूंदों, पत्तों के उड़ने और सांसों की लय में भी संगीत ढूंढ़ लेते हैं।
फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म का गाना 'मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे' देखकर महसूस हुआ कि यह मुझे किसी भी हाल में ख़ुश कर देता है। गाने का आकर्षण ही ऐसा है। गाना तो है ही ऊपर से बेइंतेहा ख़ूबसूरत मधुबाला की दिल को लुभा लेने वाली भावभंगिमाओं के साथ कथक अदाएगी, लाता मंगेशकर की आवाज़ में नटखट कृष्ण के ख़िलाफ़ राधा की शिकायती ठुमरी इसके आकर्षण का एक ऐसा दायरा बना देती है जहां पहुंचकर आखों में चमक और दिल मे दिल ठंडक लिए आप बस ठहर जाते हैं एक अनजानी प्रेम मदहोशी में।
अफसोस, यूट्यूब पर मोस्ट व्यूड सांग्स में 6.1 बिलियन व्यूज के साथ despecito और दूसरे नंबर पर 4.2 व्यूज के साथ shape of you हैं, दोनों ही गानों के अंग्रेज़ी बोलों के अर्थ अश्लीलता की पराकाष्ठा हैं लेकिन शुद्ध प्रेमाभिव्यक्ति का अरबों टन श्रृंगार रस लादे यह गाना आज की पीढ़ी से कोसों दूर है।
शायद आज की तर्क सम्मत और तंगदिल पीढ़ी इस गाने में प्रासंगिकता का अभाव पाती है।
गाने के बोल हैं- मोरी नाज़ुक कलइया मरोर गयो रे.. अब शायद कलाई मरोड़ने के सुख की प्रासंगिकता नहीं रह गई है क्योंकि नाजुक कलाई अब जिम वाली मजबूत कलाई हो गयी है।
कंकरी ऐसी मारी गगरिया फोर डारी.. इसकी जगह आरओ के पानी ने ले ली है।
सारी अनाड़ी भिगोय गयो रे.. सारी भिगोय कहां से, जीन्स आ गयी है। सारी भींग जाए चल जाता है, जीन्स भीगने पर फजीहत होती है।
नैनो से जादू किया, जियरा मोह लिया.. अब काला चश्मा जाचदा है गोर मुखड़े ने यह सुख भी छीन लिया है।
नजरिया से मोरा गुंघटा तोड़ गयो रे.. अब यह भी नहीं हो सकता है क्योंकि लाज का गुंघटा आंदोलनों की भेंट चढ़ गया है।
लेकिन उस ज़माने की पीढ़ी से इस गाने का सुख, प्रासंगिकता और आकर्षण पूछिए, वो बताएगी कि तब यू ट्यूब होता तो इसके अरबों-खरबों व्यूज होते।
गाने की ख़ुमारी ने कुछ ऐसी दिलचस्पी बढ़ाई कि इसका इतिहास जानने की ललक हुई। पता चला कि 1960 में आई के आसिफ़ की मुग़ल-ए-आज़म फ़िल्म के गाने के लिए शकील बंदायूंनी ने इसके बोल लिखे थे लेकिन गूगल करते वक़्त गाने का एक और रोचक इतिहास पता चला।
द सॉन्ग पीडिया डॉट कॉम पर दीपा जी ने इस गाने पर अंग्रेज़ी में एक ब्लॉग लिखा है। शीर्षक है - हाऊ मैनी वर्ज़न्स ऑफ दिस ठुमरी डू यू नो - मोहे पनघट पे नंदलाल
शुरुआत में लिखती हैं- हिंदी में एक कहावत है, कथा कहे सो कथक, जिसका मतलब एक ऐसी नृत्य शैली से है जो कहानी बयां करती है। जिसमें इस्तेमाल होने वाले वाद्ययंत्र हारमोनियम, तबला, सितार, बांसुरी और घुंघरू वातावरण सुंदर और पवित्र रमणीयता भरते हुए काव्य शैली में दास्तान कहने के लिए सहायक सिद्ध होते हैं। उस नृत्य शैली को ठुमरी कहते हैं।
ठुमरी का एक सरल अर्थ यह भी है कि यह ठुमकने से आई है।ठुमरी के जरिये देवी-देवताओं और इतिहास की वीरता की कहानियों को बयां किया जाता है।
विकिपीडिया के अनुसार, ठुमरी भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक गायन शैली है। इसमें रस, रंग और भाव की प्रधानता होती है।
इस नृत्यशैली के विकसित होने के दौरान इसका जुड़ाव कृष्ण की पौराणिक कहानियों के साथ बताया जाता है। कथक शैली कृष्ण से अभिन्न तरीके से जुड़ी है।
कृष्ण आधारित थीम्स आगे कथक में वर्गीकृत होती गयीं और उन्हीं में से ठुमरी का वर्गीकरण हो पाया।
ठुमरी को अर्ध शास्त्रीय माना जाता है, यह कृष्ण की पौराणिक कथाओं, भावनाओं, अभिव्यक्तियों और स्थितियों को व्यक्त करती है। यह मुख्य रूप से गोपियों के साथ राधा और कृष्ण की कहानियों को दर्शाती है।
भारतीय फिल्म जगत ने ठुमरी पर खूब काम किया है लेकिन वास्तविकता यह भी है कि सभी ठुमरियों को नृत्य शैली में नहीं पिरोया गया।
हिंदी फिल्मों में अक्सर ठुमरी को पूरे गीत या मुजरा के रूप में भी दिखाया गया। मोहे पनघट पे नंदलाल एक पारंपरिक ठुमरी बंदिश मानी जाती है।
दीपा लिखती हैं कि 'एंसाइकिलोपीडिया ऑफ हिंदी सिनेमा' किताब में लिखा है कि हिंदुस्तानी फिल्मों में तबला और हारमोनियम का इस्तेमाल पीछा करने के दृश्यों में असर प्रदान करने और फिर शास्त्रीय रागों और लोक गीतों से प्राप्त दुख और खुशियों को दर्शाने के लिए किया जाता था। कई बार वे शब्दों और बंदिश या राग के अंतरे के साथ बजाए जाते थे।
मुग़ल-ए-आज़म में इस ठुमरी के कोरियोग्राफर लछु महाराज थे जिन्होंने मधुबाला को इसके लिए नृत्य सिखाया था। ठुमरी राग गारा पर आधारित थी। जोकि सुबह और दोपहर के बीच के समय का राग है। गाने के लिए शकील बंदायुंनी, नौशाद और लता मंगेशकर को क्रेडिट दिया जाता है लेकिन कम ही लोग जानते है कि यह सच्चाई और भी है।
कहा जाता है कि इस गाने के असल गीतकार गुजरात के 'रसकवि' के तौर पर जाने गए रघुनाथ ब्रम्हभट्ट थे जिन्होंने 1920 में 'छत्र विजय' नाम के नाटक के लिए इसे लिखा था लेकिन इस गाने में ठुमरी के लिए पारंपरिक बंदिश होने का भी विवाद है।
कहा जाता है कि लखनऊ घराने के बिंदादीन महाराज वाजिद अली शाह के दरबार में मोहे पनघट पे गाया करते थे।
लछु महाराज के पिता कालका प्रसाद बिंदादीन महाराज के भाई थे यानी बिंदादीन लछु महाराज के चाचा हुए।
लेकिन यू ट्यूब पर ऐसी रिकॉर्डिंग्स भी मौजूद हैं जिनमें 1930 में मोहे पनघट पे ठुमरी को इंदुबाला आवाज़ दे रही हैं तो 1932 में उस्ताद अज़मत हुसैन खान इसे गा रहे हैं।
इंदूबाला वर्जन यहां देखें-
उस्ताद अज़मत हुसैन खान वर्जन-
काश शकीरा के 'हिप्स डोंट लाई' गाने से शारीरिक सुख की शर्त पूरी कर चुकी आज की पीढ़ी प्रेमाभिव्यक्ति के अद्भुत रस का पान करने के लिए अपनी नसें सुन्न होने से बचा पाती।