आवर्तन: नई पीढ़ी को गुरु-शिष्य परम्परा से परिचित कराने वाली फिल्म

By डॉ. कंचन भारद्वाज | Published: March 3, 2021 12:11 PM2021-03-03T12:11:44+5:302021-03-03T12:28:53+5:30

आवर्तन का निर्देशन दूर्बा सहाय ने किया है। फिल्म में मुख्य भूमिका सुषमा सेठ और शोवना नारायण ने निभायी है। इस फिल्म की समीक्षा कर रही हैं डॉ कंचन भारद्वाज।

Aavartan 2021 film review Durba Sahay Shovana Narayan sushma seth | आवर्तन: नई पीढ़ी को गुरु-शिष्य परम्परा से परिचित कराने वाली फिल्म

आवर्तन: नई पीढ़ी को गुरु-शिष्य परम्परा से परिचित कराने वाली फिल्म

‘आवर्तन‘ फिल्म अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव51 ,गोवा में दिखाई गयी और बीती शाम ‘हैबिटैट सेंटर , दिल्ली’ में दिखायी गयी .ऑडिटोरियम एक साल बाद लय, ताल और घुंघरू की झंकार से झूम उठा . दो घंटे की फिल्म के बाद आठ मिनट का नृत्य कार्यक्रम दर्शकों के सर चढ़कर ऐसे बोल रहा था कि प्रश्नोत्तर सत्र में प्रश्नों की जगह सिर्फ़ वाह -वाही आ रही थी . पद्मश्री गुरु शोवना नारायण जी ने इस फिल्म पर अपना ऐसा रंग चढ़ाया कि एक दर्शक तो उसको बायोपिक ही समझ रहे थे.

गुरू - शिष्य परम्परा को आधार बनाती यह फिल्म ह्रदयस्पर्श करने में कहीं नहीं चूकती. गुरू अपनी गोद में बैठाकर शिष्य को तैयार करता है . शिष्य की ऊँगली और हाथ पकड़कर उसको सिखाता है तब जाकर उसका शिष्य निखरता है.

फिल्म के आरम्भ में दो सीन आते हैं- एक जिसमें सितारा देवी जी नृत्य कर रही हैं और ऐसा नाचती हैं कि नाचते -नाचते एक दिन उनके घूँघरू टूटकर बिखर जाते हैं. तब एक घुंघरू तबला बजाने वाले की छोटी सी बेटी खुश होकर एक घुंघरू उठा लेती है , लेकिन फिर जब वह लौटाने लगती है तब सितारा देवी जी उसको ख़ुशी से देती हैं. वह जो बच्चे की ख़ुशी थी घुंघरू उठाकर हाथ में रख लेने की ,वही तो है कला का आनंद.

कला का मूल्यांकन अखबारी आलोचना से जोड़कर कम से कम कलाकार को तो नहीं देखना चाहिए . यह महत्वपूर्ण सीन है जो फिल्म के क्लाईमेक्स पर खुलता है.

गुरु का स्वप्न और द्वंद्व

दूसरा सीन है जिसमें रेगिस्तान में नाचती दो स्त्रियाँ . जिनका गुरु और शिष्य का सम्बंध है .दरअसल यह गुरु के स्वप्न का दृश्य है जिसमें शिष्या की एक नज़र ऐसी है जब गुरु को लगता है कि शिष्या गुरु को चुनौती दे रही है . गुरु को चक्कर आ जाता है और उनका स्वप्न टूटता है . एक असुरक्षा की भावना नकारात्मक स्वप्न के रूप में घर कर जाती है लेकिन मुट्ठी में बंद घूँघरू की ख़ुशी सकारात्मकता की ओर ले जाती है. संतुलन के साथ शुरू हुयी फिल्म में कई भावनात्मक बिंदु आते है.

शिष्या रेणुका तब बेहद दुखी हो जाती है जब कक्षा में गुरू अन्य सभी सहपाठियों का नाम लेती हैं और उसका नहीं लेती हैं तब जैसे उसका दिल उसकी आँखों के पानी में तडपती मछली सा दिखाई देता है . गुरू भी तो तड़प रही हैं जान-ए-जिगर शागिर्द के बिना. आधी रात को उसको स्मृतियों में भीग जाती हैं बीच की उस पवित्र जलधारा में जहाँ दोनों मिल रही हों जैसे संगम में गंगा मिलती है.    

गुरू के प्रति समर्पित शिष्या रेणुका अपनी कला में भी पारंगत है. शिष्या को कला में निपुण गुरु की मेहनत और प्रेम ने बनाया है. शिष्या भी गुरु से खूब प्रेम करती है ,अपनी कला के प्रति पूरी तरह समर्पित है लेकिन एक चूक उससे हो जाती है. कला के लिए गुरु से भी आगे जाने लगती है . यहाँ तक कि गुरू की चोट का भी ध्यान नहीं रखती .यह चोट गुरु के मन पर पड़ती है.

कला के आलोचक युवा प्रतिभा रेणुका का गुणगान करते हैं और गुरु का नाम भी नहीं लेते. तब गुरु को लगता है कि जैसे वह कोई 'एंटिक पीस' भर तो नहीं है. तब उनकी गुरु बा हाथ में वही ख़ुशी घूँघरू रख देती हैं जो सितारा देवी जी का है . सब कुछ देकर अपना आवर्तन पूरा करती हैं. यह आवर्तन पूरा करना ही गुरु-धर्म है. फिल्म का यही सन्देश लगता है.

कला का आवर्तन

कथक गुरु भावना भी अपनी शिष्या को सब कुछ सौंपकर अपना आवर्तन पूरा करती हैं. गुरु शिष्य परम्परा भारतीय शिक्षा पद्धति विश्व-विख्यात है. ज्ञान वही जो प्रेम से उपजे ...ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ...शिष्य की श्रद्धा और गुरु का प्रेम , यही सत्य है. तभी पूरा होगा आवर्तन का चक्र पूरा ...

फिल्म में शम्भू महाराज जी का प्रमिलू ,और पुरानी शिव परन सुनने देखने को मिलती है . सुन्दर नृत्य और नृत्य की कक्षा देखने को मिलती है . कितने ही प्रोडक्शन गुरु शोवना नारायण ने बनाये हैं जिनमें कांसेप्ट और निर्देशन सब उनका ही रहता है .

अली सरदार जाफरी ,रूमी ,काजी नज़रुल इस्लाम की कविता हो या द्रौपदी, यशोधरा,कुंती,शकुंतला , जैसी स्त्रियाँ हों , वे उनके मनोभाव खूब निभाती हैं .अभिनय उनके लिए नया बिल्कुल नहीं हैं . जो लोग उनको ‘गुरु’ के रूप में जानते हैं उनके लिए मुश्किल हो जाता है ईर्ष्यालु गुरु भावना को स्वीकारना.

कत्थक अभिनय के अनुभव 

निर्देशक दूर्बा सहाय की यह पहली फीचर फ़िल्म है और बतौर फिल्म-अभिनेत्री यह पद्मश्री शोवना नारायण की भी यह पहली फिल्म है लेकिन गुरु शोवना नारायण जी का वर्षों का कत्थक में अभिनय का अनुभव है और दूर्बा जी का भी थियेटर और साहित्य का अनुभव है.

एक साक्षात्कार में दूर्बा बताती हैं कि यह संकल्पना तब उपजी थी जब उन्होंने हिंदी की पत्रिका ‘हंस के संपादक राजेंद्र यादव जी से प्रश्न किया था कि ‘ जब लेखक आपसे आगे निकल जाते हैं तब आपको ईर्ष्या नहीं होती क्या ?’ 

गुरु के बड़प्पन और शिष्य के साथ उसके प्रेम और उसके पूरे व्यक्तित्व को संवारने की गुरु शिष्य परम्परा नई पीढ़ी को बताती है यह फिल्म . जब नर्तकी भावना अपनी शिष्या से ईर्ष्या के कारण उसको सिखाना बंद कर देती है तब उनकी गुरु बा उनको संभालती हैं.  सच्चा गुरु ज्ञान देने के साथ उसे अच्छा मनुष्य भी बनता है . ‘भीतर हाथ सहार दे बाहर मारे चोट’.

शोवना नारायण का गुरु रुप

फिल्म में नये कलाकार भी हैं वे अपनी गुरु पद्मश्री शोवना नारायण जी से शिक्षा लेकर कथक में पारंगत हैं. सबका अभिनय बहुत शानदार है.

प्रतिमा बनी कोमल आँखों में ही बहुत कुछ सम्प्रेषित करती हैं और रेणुका बनी मृणालिनी ने तो ऐसा काम किया है कि यह दिल मांगे मोर की तर्ज पर जल्दी ही किसी नई फिल्म में दिखना चाहिए.

संवाद कुछ अन्य होते जो विद्यार्थियों की आपसी बातचीत से रेणुका की मनः स्थिति को थोड़ा और खोल देते . वैसे फोटोग्राफर बने रेणुका के प्रेमी ने कई कड़ियों को बहुत ही सहजता से जोड़ा है. सेक्रेटरी और बा के रूप में जो कलाकार सुषमा सेठ हैं उनके काम का प्रभाव देर तक मन पर रहेगा.

संगीत का जादू पूरी फिल्म में बरक़रार रहता है लेकिन गुरु के रूप में पद्मश्री शोवना नारायण जी भावना के रूप में अप्रतिम हैं. उम्मीद है दूर्बा सहाय फीचर फ़िल्म में फिर कोई नया प्रयोग करेंगी.

 

Web Title: Aavartan 2021 film review Durba Sahay Shovana Narayan sushma seth

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