लोकसभा चुनाव 2024ः नीतीश कुमार की विश्वसनीयता विपक्षी एकता के लिए मुश्किल!, कांग्रेस को मुख्यमंत्री पर भरोसा नहीं, बार-बार बदल लेते हैं पाला
By एस पी सिन्हा | Published: June 7, 2023 03:32 PM2023-06-07T15:32:34+5:302023-06-07T15:34:07+5:30
Lok Sabha Elections 2024: 12 जून को पटना में विपक्षी एकता की बैठक बुलाई थी, जो टल गई। दरअसल, विपक्षी एकता की बैठक में शामिल होने को लेकर भाजपा विरोधी दलों के बीच कहीं न कहीं संदेह बना हुआ है।

नीतीश कुमार पर अभी भी कांग्रेस विश्वास नहीं कर पा रही है। (file photo)
पटनाः लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने के लिए किए जाने वाले प्रयास पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। उन्होंने 12 जून को पटना में विपक्षी एकता की बैठक बुलाई थी, जो टल गई। दरअसल, विपक्षी एकता की बैठक में शामिल होने को लेकर भाजपा विरोधी दलों के बीच कहीं न कहीं संदेह बना हुआ है।
बैठक से किनारा करने लेकर कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार पर अभी भी कांग्रेस विश्वास नहीं कर पा रही है। पार्टी कहीं न कहीं यह सोंच कर चल रही है कि नीतीश कुमार पर भरोसा करना ठीक नहीं होगा।दरअसल, नीतीश कुमार बार-बार अपना पाला बदल लेते हैं। वे कभी एनडीए तो कभी महागठबंधन के बीच झूलते रहते हैं।
नीतीश कुमारः कांग्रेस का साथ छोड़ भी सकते हैं
कांग्रेस को इसी बात का डर है। इसको लेकर कांग्रेस के अंदर भी मंथन चल रहा है। जानकारों की मानें तो कांग्रेस को लगता है कि अगर अगले लोकसभा चुनाव में जदयू मजबूत स्थिति में होती है और नीतीश कुमार को लगेगा कि उन्हें भाजपा या राजद के साथ रहने में फायदा है तो वह कांग्रेस का साथ छोड़ भी सकते हैं।
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस विपक्षी एकता के बहाने हो रहे खेल को समझ रही है। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब कांग्रेस के पास विपक्षी एकता का फार्मूला लेकर गये थे तो उन्होंने ये भरोसा दिलाया था कि वे ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, नवीन पटनायक जैसे नेताओं को इस बात के लिए राजी कर लेंगे कि वे अपने प्रभाव वाले राज्य में कांग्रेस से समझौता करें।
नवीन पटनायक बात करने तक को तैयार नहीं हुए
उसे सम्माजनक सीटें दें। लेकिन ऐसा कोई संवाद नहीं आया। नवीन पटनायक बात करने तक को तैयार नहीं हुए। कांग्रेस के एक नेता ने नाम नही छापने के शर्त पर बताया कि ममता बनर्जी ने ही राहुल गांधी और पार्टी के दूसरे प्रमुख नेताओं की आंखें खोली। कांग्रेस को लगा कि खेल क्या हो रहा है?
उधर, अरविंद केजरीवाल को लेकर कांग्रेस में भारी घमासान छिड़ा है। पंजाब, दिल्ली से लेकर गुजरात और गोवा जैसे राज्यों की कांग्रेस इकाईयों ने आलाकमान को साफ कह दिया है कि अरविंद केजरीवाल से कोई समझौता नहीं किया जाए।
कांग्रेस को देश में सिर्फ 250 लोकसभा सीटों पर लड़ने के लिए कहा जाये
नीतीश कुमार समेत विपक्षी एकता की मुहिम में शामिल ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल का प्लान था कि कांग्रेस को देश में सिर्फ 250 लोकसभा सीटों पर लड़ने के लिए कहा जाये। बाकी सीटें वह क्षेत्रीय पार्टियों के लिए छोड़ दे। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में देश में ऐसी तकरीबन साढ़े तीन सौ सीटें थीं, जहां कांग्रेस पहले या दूसरे नंबर पर थी।
कांग्रेस देश भर में साढे तीन सौ सीटों से कम पर लड़ने को हरगिज तैयार नहीं है। ऐसे में कांग्रेस के आलाकमान को ये समझ में आ गया है कि विपक्षी एकता की ये मुहिम उसे कई राज्यों से पूरी तरह आउट करने की कवायद है। अगर कांग्रेस बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में एक-दो सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो उस राज्य से उसका साफ हो जाना तय है।
फिर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ही साथ छोड़ देगी
ये वो राज्य हैं, जहां कांग्रेस कई दशकों तक राज करती आई है। कांग्रेस का मकसद अपने पुराने वोट बैंक को हासिल करने का है, न कि किसी क्षेत्रीय पार्टी के लिए अपना जनाधार कुर्बान कर देने का है। लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस के जनाधार पर फसल काटेंगी और फिर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ही साथ छोड़ देगी।
कांग्रेस ऐसी कुर्बानी देने को कतई तैयार नहीं है। वैसे पहले से ही कांग्रेस का कई क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता है। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी के साथ गठबंधन है तो तमिलनाडु में डीएमके के साथ।
कांग्रेस इन राज्यों में गठबंधन के साथ चुनाव लड़ेगी। पश्चिम बंगाल में वह वामपंथी पार्टियों के साथ गठजोड़ कर सकती है। वहीं, बिहार में राजद-जदयू के साथ उसका गठबंधन जारी रहेगा। इसके अलावा किसी नए गठजोड की संभावना नहीं है।