नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) की ताजा 76वीं रिपोर्ट के मुताबिक देश में 82 करोड़ लोगों को जरूरत के मुताबिक पानी मिल रहा है. देश के महज 21.4 फीसदी लोगों को ही घर तक सुरक्षित जल उपलब्ध है. ...
अनुभवों से यह तो स्पष्ट है कि भारी-भरकम बजट, राहत, नलकूप जैसे शब्द जलसंकट का निदान नहीं हैं. करोड़ों-अरबों की लागत से बने बांध सौ साल भी नहीं चलते, जबकि हमारे पारंपरिक ज्ञान से बनी जल संरचनाएं ढेर सारी उपेक्षा, लापरवाही के बावजूद आज भी पानीदार हैं. ...
अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन समय-समय पर घुसपैठ और बयानबाजी करता रहा है और अब वह इस इलाके में अस्थिरता के लिए छोटे आतंकी गुटों को शह दे रहा है। बीते कुछ सालों में अलगाववादी संगठनों पर बढ़े दबाव और उनके साथ हुए समझौतों ने माहौल को शांत बनाया है। ...
यह समझना जरूरी है कि अपनी स्थानीयता, अपने शहर, अपने पूर्वजों पर गर्व करने वाला समाज ही अपने परिवेश और सरकारी या निजी संपत्ति से जुड़ाव महसूस करता है और उसको सहेजने के प्रति संवेदनशील बनता है। ...
विश्व बैंक से इसके लिए कोई एक अरब डॉलर का कर्ज भी लिया गया, लेकिन न तो गंगा में पानी की मात्रा बढ़ी और न ही उसका प्रदूषण घटा। सनद रहे कि यह हाल केवल गंगा का ही नहीं है। देश की अधिकांश नदियों को स्वच्छ करने के अभियान कागज, नारों में व बजट को ठिकाने लग ...