इतिहास गवाह है कि औपनिवेशक दौर में पश्चिम से लिए गए विचार, विधियां और विमर्श अकेले विकल्प की तरह दुनिया के अनेक देशों में पहुंचे और हावी होते गए। ऐसा करने का प्रयोजन 'अन्य' के ऊपर आधिपत्य था। ...
आज के दौर में भौतिक संपदा पाने की बेइंतहा होती लालसा इतनी तेजी से बढ़ती जा रही है कि लोग बेचैन हो कर उसे पाने के लिए उल्टा-सीधा कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। ...
नव-रात्रि में दुर्गा की आराधना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मचती है। फिर आती है विजयादशमी। भगवान रामचंद्र द्वारा राक्षसराज रावण के संहार को याद किया जाता है और रावण-दहन होता है। ...
आज के युग में जब ज्ञान सूचनामूलक होता जा रहा है, निजी अनुभव से अधिक तकनीकी पर निर्भर करने लगा है और ज्ञान की सार्थकता रुपए पैसे कमाने की संभावना से आंकी जाने लगी है, तब परंपरागत शास्त्र-ज्ञान को सुरक्षित रखना कठिन होने लगा है। ...
आज के दौर में जब नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है, विजयादशमी एक भरोसा जगाती है. यह दिन शांति और धर्म की व्यवस्था बनाए रखने और राम राज्य स्थापित करने की प्रेरणा देता है। ...
आचार्य शुक्ल ने सौंदर्य के साथ-साथ भावनाओं के अनुभवमूलक पक्ष के महत्व को भी स्वीकार किया। शुक्लजी द्वारा किया गया उत्साह के मनोभाव का विश्लेषण कई मायनों में नया है। यह भावनात्मक स्थिति आनंद की श्रेणी में आती है। ...
अंग्रेजों के जाने के बाद भी औपनिवेशिक मानसिकता टिकी रही क्योंकि नौकरशाही को उसका अभ्यास हो चुका था और निहित हित के चलते उसकी श्रेष्ठता की पैरवी भी कई-कई कोनों से होती रही। भाषा को लेकर भेदभाव का विषय उलझता गया और राजनीति के स्वार्थ के बीच भारतीय भाषा ...
मनोविज्ञान के आधुनिक अनुशासन को एकरूपी ढंग से देखने की आदत बन चुकी है जबकि शुरू से ही इसके निर्माण में अच्छी खासी बहुलता है और कई तरह के मनोवैज्ञानिक ज्ञान का सृजन होता आ रहा है। ...