डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: चुनाव है...सभ्यता का गला मत घोंटिए!

By विजय दर्डा | Published: April 29, 2024 06:27 AM2024-04-29T06:27:02+5:302024-04-29T06:27:02+5:30

चुनाव आज हो रहे हैं, कल समाप्त हो जाएंगे लेकिन शब्दों के ये जो जहरीले बाण छूट रहे हैं, और जो जख्म पैदा कर रहे हैं उनका कोई इलाज नहीं होता! मौजूदा वक्त में समाज के ताने-बाने को सुरक्षित करना बहुत जरूरी है। देश सबकुछ देख रहा है।

Lok Sabha Elections 2024 There is an election...don't strangle civilization says Dr Vijay Darda | डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: चुनाव है...सभ्यता का गला मत घोंटिए!

फाइल फोटो

Highlightsदेश में अभी आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हैचुनाव प्रचार के दौरान धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल नही किया जा सकता हैन ही धर्म, संप्रदाय और जाति के आधार पर वोट देने की अपील की जा सकती है

हम सभी जानते हैं कि देश में अभी आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू है। चुनाव प्रचार के दौरान न तो धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है और न ही धर्म, संप्रदाय और जाति के आधार पर वोट देने की अपील की जा सकती है। ऐसी कोई बात नहीं की जा सकती है जिससे कोई भेदभाव हो और वैमनस्यता फैले, लेकिन हो क्या रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। नेताओं की जुबान बेलगाम हो गई है और दुश्मनी की आंधी चल रही है।

एक-दूसरे की नीतियों की आलोचना चुनाव का हिस्सा हो सकता है और होना भी चाहिए लेकिन एक-दूसरे पर भीषण और भद्दे आरोप नहीं लगाए जा सकते हैं, परंतु मौजूदा दौर में जो हो रहा है उसने भारतीय सामाजिक ताने-बाने की जड़ों को गंभीर क्षति पहुंचाने का काम किया है। चुनाव आयोग के ही आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले सप्ताह तक आयोग के पास आचार संहिता उल्लंघन की 200 से ज्यादा शिकायतें आ चुकी थीं।

आयोग का कहना है कि इनमें से 169 पर कार्रवाई हुई। भाजपा की तरफ से 51 शिकायतें आईं जिनमें से 38 मामलों में कार्रवाई की गई। कांग्रेस की ओर से 59 शिकायतें आईं, जिनमें 51 मामलों में कार्रवाई की गई। अन्य दलों की ओर से 90 शिकायतें आईं और 80 मामलों में कार्रवाई की गई है। आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं।

वास्तव में नेताओं ने इस चुनाव के दौरान भाषा को इतना बदरंग कर दिया है कि मैं अपने इस कॉलम में उन वाक्यों का इस्तेमाल करना भी पसंद नहीं करूंगा। मैंने बचपन से राजनीति का सर्वस्वीकार्यता वाला स्वरूप देखा है और खुद के राजनीतिक जीवन में भी उसका पालन किया है। यहां मैं दो घटनाओं का खासतौर पर जिक्र करना चाहूंगा। 

मेरे बाबूजी वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के खिलाफ प्रचार सभा के लिए अटल बिहारी वाजपेयी यवतमाल आने वाले थे। उस जमाने में बड़े नेता भी ट्रेन से प्रवास करते थे। कार्यकर्ता के घर पर रुकते थे। ट्रेन से उतरने के बाद गंतव्य तक कार से जाते थे। तब कारें इक्का-दुक्का ही हुआ करती थीं।

अटल बिहारी वाजपेयी को धामनगांव से यवतमाल लाने के लिए जिस कार की व्यवस्था स्थानीय नेताओं ने की थी वह धामनगांव से पहले ही खराब हो गई। स्थानीय नेताओं ने बाबूजी को फोन किया कि भैया जी आपकी मदद चाहिए। कार खराब हो गई है और पंद्रह मिनट में ट्रेन आने वाली है। बाबूजी को सभी लोग भैया जी के नाम से संबोधित करते थे। बाबूजी ने कहा कि परेशान मत होइए। कार पहुंच जाएगी।

बाबूजी ने बिरला जीनिंग मिल के भट्टड़ जी को फोन किया और कार भेजने का आग्रह किया। वे भौंचक्के रह गए कि अटल जी के लिए भैया जी कार भेजने को कह रहे हैं। बाबू जी ने कपास का व्यवसाय करने वाले जयरामदास भागचंद को फोन किया और उनसे भी कार भेजने के लिए कहा। दोनों कारें धामनगांव रेलवे स्टेशन पहुंच गईं। 

अटल जी ने पूछा कि ये दो-दो कारें क्यों? उन्हें बताया गया कि ये गाड़ियां दर्डा जी ने भेजी हैं। दो इसलिए भेजी हैं ताकि एक खराब भी हो जाए तो आप समय पर सभा में पहुंच जाएं। अटल जी इस बात से हतप्रभ थे कि वे जिनके खिलाफ प्रचार करने जा रहे थे, उन्होंने उनके लिए गाड़ियां भेजी थीं! सभा के बाद बाबूजी से मिलने अटल जी हमारे घर आए थे।

एक और घटना बताता हूं। बाबूजी के चुनाव प्रचार के दौरान उनके साथ मैं भी था। यवतमाल जिले के दारव्हा तालुका से हम गुजर रहे थे। रास्ते में बाबूजी को अचानक सड़क किनारे बुचके जी खड़े दिख गए जो बाबूजी के खिलाफ चुनाव में खड़े थे। बाबूजी ने कार पीछे ली और पूछा कि क्या हो गया? बुचके जी ने बताया कि उनकी कार खराब हो गई है।

बाबूजी ने उन्हें कार में बिठाया और उनकी सभा तक उन्हें छोड़ कर आए। वैचारिक रूप से नेताओं में भिन्नता होती थी लेकिन वे एक-दूसरे का सम्मान करते थे। मुझे याद है कि जॉर्ज फर्नांडिस, मधु दंडवते, मधु लिमये और दूसरे बहुत से नेता बाबूजी के पास आते थे। मैं भी राजनीतिक रूप से दूसरी विचारधारा के लोगों से भी मित्रवत रहता हूं। 

कहने का आशय यह है कि मतभिन्नता हो लेकिन मनभेद नहीं होता चाहिए, लेकिन आज प्रचार में जो गिरावट आ रही है यह लोकतंत्र की जड़ों को क्षति पहुंचा रहा है। मेरा मानना है कि एक-दूसरे के हम कितने भी मुखर आलोचक हों, हमारी भाषा हमेशा कायदे की होनी चाहिए। इसके लिए मशहूर शायर बशीर बद्र का एक शेर मुझे मौजूं लगता है..

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे/जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों। हम मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम और कर्मयोगी भगवान श्रीकृष्ण की धरती के लोग हैं। हमें खुद से पूछना चाहिए कि क्या हम उनके आचरण का पालन कर रहे हैं? हम भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, छत्रपति शिवाजी, महात्मा गांधी और बाबासाहब को पूजने वाले लोग हैं लेकिन हमारा आचरण कैसा है? 

चुनाव आज हो रहे हैं, कल समाप्त हो जाएंगे लेकिन शब्दों के ये जो जहरीले बाण छूट रहे हैं, और जो जख्म पैदा कर रहे हैं उनका कोई इलाज नहीं होता! मौजूदा वक्त में समाज के ताने-बाने को सुरक्षित करना बहुत जरूरी है। देश सबकुछ देख रहा है। ध्यान रखिए, चुनाव और उससे उपजने वाली सत्ता कभी भी देश से बड़ी नहीं हो सकती। यह हमारे लोकतंत्र की ताकत है। देश पहले...बाकी सबकुछ बाद में! गुजारिश बस इतनी है कि इस देश की सभ्यता का गला मत घोंटिए...!

Web Title: Lok Sabha Elections 2024 There is an election...don't strangle civilization says Dr Vijay Darda

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